वाकियात
चँद कंचोंकी आवाज हुई बस,
फिर खेल सारा बिखर गया!
पंछी उड गये पेडोंसे और,
माँ का दामन सिहर गया!!
सफेद बर्फपे गिरे थे जो,
वो स्याह खूनके छींटें थे!
फर्जकी खुशबू थी जिनमें,
वो आँसू बडे ही मीठे थे!!
गुजर गये थे मौसम यूँ ही,
सावन सारे रुठे थे!
‘लौट आऊँगा प्रिये’, कहा था जिनमें
वो वादे सारे झूठे थे!!
परसोंही जन्मे बच्चेका उसने,
मुख भी अब तक देखा न था!
बूढे पिताके चरणोंमें, सुना हैं,
कई दिनोंसे मथ्था टेका न था!!
नेता मस्त थे घोटालोंमें,
आवाम चैनसे सोया था!
बस धरतीका सीना उस दिन,
चुपके चुपके रोया था!!
न बातोंमें चर्चा था कोई,
न न्यूजमें थी कोई हरारत!
वैसेभी इन बातोंकी,
उसको कब कहाँ थी चाहत!!
‘कडी निंदा’के दौरे पडे बस,
श्रद्धांजलीकी भाषा थी!
कहनेवालेकी आँखोंमें लेकीन,
झूठे ‘अमन की आशा’ थी!!
कुल मिलाके वोही हुआ था,
जिसकी रोज हमें हैं आदत!
सबकुछ मझेमें चल रहा हैं अपना,
सीमापे जवान मरा था शायद!!
– © विक्रम.