धूप बँधी है पाँवों सेछाँव में खुद को घोल लूँसदियों से बंद हूँ किवाड़ों सीआज अपने आप को खोल दूँ मौन की परछाईयाँ जब चुभने लगती हैसिसकियों से चिंगारियाँ उगने लगती हैऔर रेंग-रेंग कर समय निगोड़ा आँखों में भर आता हैआता है तो फिर जन्मों का वह सूद ले के ही जाता हैबहते समय को अब के लेकिन भौहों से ही मोड़ दूँसदियों से बंद हूँ किवाड़ों सीआज अपने आप को खोल दूँ — © विक्रम श्रीराम एडके[एक नारी का संघर्ष व्यक्त करने वाला यह गीत, एक हिंदी शॉर्टफिल्म के लिए लिखा था। किन्तु उन्हों ने किसी कारणवश फिल्म की …Read more »
Category Archives: Poetry
नज़्म के अन्दर
नज़्म खोल के देखी है कभी?मिसरें छील के देखें है?होता है अन्दर इक दिल जावेदाँन सुनो तो डेड होता है, ठिठका साऔर सुनो तो झट से पकड लेता है उँगलीले चलता है रूह की कफ़सके पारकभी उस दिलके सँकरें रास्तें गुज़रोगेतो अमुमन कुरेदें जाएँगे कुछ सटें-सटेंसे लम्हेंकुछ बहती यादें अटकी होंगीकुछ भुलावे के बाईपास दिखेंगेकम ही गुज़रना उनसे,अटकाव पे ज़ोर लगा देनातब शोर करेगा वह दिलरास्तें खुल जाएँगेइक पुल सा बन जाएगा तुम तकमंज़िलें वहीं मिलेंगी! — © विक्रम
ठहरा ठहरा सा दौर है
ठहरा ठहरा सा दौर हैभागते रहते है लोगचकाचौंध रौशनी से ख़्वाब जलाएफोन की आड में मुँह छिपाएजाने किस से?अफ़साने उग रहे है आज-कल बसहक़ीकतों के कोंपले फूटते नहीं हैफकत खबरें गढ़ी जाती है यहाँऔर हम भी यकिन छेद के उँगली की नोंक परस्क्रोल कर देते है हर वारदात कोलाईक्स, शेअर और कमेंट्स का लहूरिसता रहता है छेदों से, और फिरमौत आती है हर रात, नीन्द नहीं आतीक़तरा कर हँसते है हम क़तरा भरक़तरा भर बरसते है हम छितरा करदो क़तरों में सिमटा हुआ हमाराठहरा ठहरा सा दौर है — © विक्रम श्रीराम एडके
उजळून ये.. उजळून ये..
स्त्री म्हटलं की माझ्या डोळ्यांसमोर आगीची विविध रुपे येतात. कधी देवघरात तेवणारं निरांजन, कधी साक्षात वडवानल, समयीसारखी शांत तर कधी सूर्यासम दाहक. कधी चुलीवरची आच, कधी मायेची ऊब, कधी टळटळीत दुपारची प्रखरता तर कधी पहाटेची हलकी शीतलता. मुण्डकोपनिषदाचा अभ्यास करताना वाचलं होतं की, अग्निच्या सात जिह्वा असतात. काळावर सत्ता चालवणारी ‘काली’, विक्राळ ‘कराली’, मनाच्या गतिची ‘मनोजवा’, इन्फ्रारेड म्हणता येईल अशी ‘सुलोहिता’, अल्ट्राव्हायलेट वर्णन करता येईल अशी ‘सुधूम्रवर्णा’, ठिणगीसारखी ‘स्फुल्लिंगिनी’ आणि समस्त विश्वालाच आवडीने गिळंकृत करणारी ‘विश्वरुची’, या सातही अग्निजिह्वा मला स्त्रीचीच विविध रूपे वाटतात. रूप कोणतेही असो, स्त्री ही ज्योत आहे. स्त्री ही मशालीचा पोत आहे. अविनाशी धग आहे. आणि …Read more »
कर्तव्य के पथ पर
उत्कर्ष मिलेगा, अपकर्ष भी!कर्तव्य के पथ पर,वेदनाएं मिलेंगी, हर्ष भी! कंकर छेदेंगे पग तुम्हारे,जिह्वाएं ह्रदय भेदेंगी!पंक उछलेगा चरित्र पर,धैर्य कि अंगुली छूटेगी!किंतु रे धीर, तुम चलते रहना,तुम चलते रहना अविचल,जब तक कि गंतव्य ना मिले,चाहे मार्ग में यश मिले संघर्ष भी!! तुम चलते रहना निरलस, पथ में शत-शत मोड आएंगे,आप्त तुम्हारे, साथ तुम्हारा, क्षण में छोड जाएंगे!न ढलेगी कोई रात्रि जब होगी नयनों से वृष्टि नहीं,सम्भव है, कि तुम्हें लगे, भगवान की तुम पर दृष्टि नहीं!तब सोच समझ के करना दोनों, क्रोध भी, मर्ष भी,और अथक चलते रहना धीर,जब तक कि गंतव्य ना मिले,चाहे मार्ग में यश मिले, संघर्ष भी!! …Read more »
मौन के महाद्वीप
निशा थीचन्द्रमा थाझील के तीर परतुम थी, मैं थाकिन्तु दोनों के मध्यतब भी थे मौन के द्वीपकुछ नि:श्वासों की दूरी परऔर कुछ शब्दों के समीपवे द्वीप यदि लाँघ पातेसंकोच के बाँध यदि तोड पातेकथा कुछ अन्य मोड लेतीकविता विरह की उँगली छोड देतीविचारों-विचारों में रात्रि ढल गयीअधरों तक आयी बात, टल गयीनिशा, चन्द्रमा तथा झीलतीनों अब भी वहीं हैनहीं है तो केवल मैं और तुमया है कदाचित किसी और समयधारा मेंइस आयाम में तो मौन के द्वीप सम्भवत:अब महाद्वीप बन गए है — © विक्रम श्रीराम एडके
सफ़र नया..!
जेबें तो साफ़ हैपर आँखों में ख़्वाब हैजुनूँ के क़ाफ़िलों कीआदत ख़राब हैछोड़ी है मँजिलेरस्तों के वास्तेखोने-पाने का यहभी अपना हिसाब़ हैडगर नयी है, जिगर वही हैऔर है, सफ़र नया! अपने साथ में है कुछ नए फासलेबंदिशें भी राह में खुल के साँस लेपंछी है, उड गएमोडों पे, मुड गएराहों में जो मिलाहम उस से जुड गएडगर नयी है, जिगर वही हैऔर है, सफ़र नया! सडक जहा पर ले जाएअपना भी वहीं पे ही दिल आएरुकना हम को सताएके डर को तोडो, छोडो, दौडो,दिन में, या रात मेंतूफ़ाँ, बरसात मेंरस्तों के बादशाहहम चलते रुबाब सेडगर नयी है, जिगर वही हैऔर …Read more »
जलने दे..
जलने दे जलने दे तेरी आँच से जलने देगलने दे गलने दे मुझे काँच सा गलने देमैं हूँ महताब का जायादे दे तेरी धूप मुझेतू सच और जग है मायाले ले मेरी छाँव तुझे कभी फोन पे उँगलियाँ भी मेरे नाम पे रुकती तो होंगीभरमाती तो होंगी कुछ आहटेंअश्क़ों की बदलियाँ भी तेरे ग़ालों पे झुकती तो होंगीधुल जाती तो होंगी मुस्काहटेंबोल..सजना तू ने क्या पायारख के तेरी धूप तुझेग़म सच और राहत मायासमझा है खूब मुझे जलने दे.. — © विक्रम श्रीराम एडके (एक संगीतकार द्वारा बनायी गयी धुन पर लिखा था यह गीत। किसी भी गीतकार के अधिकांश …Read more »
हसरत
जिस्मों की पहेलियों कोसाँसों की सहेलीयों कोसाँसों से सुलझा दो तुम, खुल जाऊँगी!गिरहा खुल जाऊँगी!! मैं सदियों से खोई पडी हूँतारों के भुलभुलैया मेंयुगों से वहीं खडी हूँसमय के तालतलैया मेंखाली सी हवेलीयों कोसाँसों की सहेलीयों कोसाँसों से सुलगा दो तुम, भर आऊँगी!पूरी भर आऊँगी!! मैं मौन की एक नदी हूँशोर भरी इस दुनिया मेंहै मेरा कोई घाट कहाँछोर नहीं इस दुनिया मेंकाई जमी हथेलियों कोसाँसों की सहेलीयों कोसाँसों से पिघला दो तुम, घुल जाऊँगी!तुझ में घुल जाऊँगी!! — © विक्रम श्रीराम एडके[www.vikramedkde.com । चित्र: प्रातिनिधिक । चित्रश्रेय: मूल चित्रकार को । चित्रस्रोत: इंटरनेट ।]
रुणुझुणू वारा
२०१६ मध्ये माझ्याकडे एक मराठी चित्रपट-दिग्दर्शक आला होता, ‘मी एक रोमँटिक चित्रपट करतोय त्यासाठी गाणं लिहून द्याल का’ विचारत. मी त्याला चालीबद्दल विचारले. तो म्हणाला की, ‘तुम्ही लिहा आपले संगीतकार चाल लावतील’. असे म्हणून त्याने मराठीतल्या एका बरे नाव असलेल्या संगीतकाराचे नाव घेतले. म्हणजे गाणं आधी लिहून मग चाल लावली जाणार होती. प्रासंगिक गीत असल्यामुळे मी दिग्दर्शकाकडून संहिता मागवून घेतली. त्या तथाकथित रोमँटिक प्रसंगावर गाणे लिहिले आणि संगीतकाराला पाठवून दिले. दुसऱ्या दिवशी सकाळीच मला संगीतकाराचा फोन आला. “हे काय लिहिलेय तुम्ही”? “गाणे”, मी. “हे असं नकोय आपल्याला”. “असं नकोय, मग कसं हवंय”? त्यावर त्याने वापरलेले वाक्य अक्षरशः असे होते – …Read more »
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