कर्तव्य के पथ पर
उत्कर्ष मिलेगा, अपकर्ष भी!
कर्तव्य के पथ पर,
वेदनाएं मिलेंगी, हर्ष भी!
कंकर छेदेंगे पग तुम्हारे,
जिह्वाएं ह्रदय भेदेंगी!
पंक उछलेगा चरित्र पर,
धैर्य कि अंगुली छूटेगी!
किंतु रे धीर, तुम चलते रहना,
तुम चलते रहना अविचल,
जब तक कि गंतव्य ना मिले,
चाहे मार्ग में यश मिले संघर्ष भी!!
तुम चलते रहना निरलस, पथ में शत-शत मोड आएंगे,
आप्त तुम्हारे, साथ तुम्हारा, क्षण में छोड जाएंगे!
न ढलेगी कोई रात्रि जब होगी नयनों से वृष्टि नहीं,
सम्भव है, कि तुम्हें लगे, भगवान की तुम पर दृष्टि नहीं!
तब सोच समझ के करना दोनों, क्रोध भी, मर्ष भी,
और अथक चलते रहना धीर,
जब तक कि गंतव्य ना मिले,
चाहे मार्ग में यश मिले, संघर्ष भी!!
— © विक्रम श्रीराम एडके
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Inspiring!!