हसरत
जिस्मों की पहेलियों को
साँसों की सहेलीयों को
साँसों से सुलझा दो तुम, खुल जाऊँगी!
गिरहा खुल जाऊँगी!!
मैं सदियों से खोई पडी हूँ
तारों के भुलभुलैया में
युगों से वहीं खडी हूँ
समय के तालतलैया में
खाली सी हवेलीयों को
साँसों की सहेलीयों को
साँसों से सुलगा दो तुम, भर आऊँगी!
पूरी भर आऊँगी!!
मैं मौन की एक नदी हूँ
शोर भरी इस दुनिया में
है मेरा कोई घाट कहाँ
छोर नहीं इस दुनिया में
काई जमी हथेलियों को
साँसों की सहेलीयों को
साँसों से पिघला दो तुम, घुल जाऊँगी!
तुझ में घुल जाऊँगी!!
— © विक्रम श्रीराम एडके
[www.vikramedkde.com । चित्र: प्रातिनिधिक । चित्रश्रेय: मूल चित्रकार को । चित्रस्रोत: इंटरनेट ।]