जलने दे..
जलने दे जलने दे तेरी आँच से जलने दे
गलने दे गलने दे मुझे काँच सा गलने दे
मैं हूँ महताब का जाया
दे दे तेरी धूप मुझे
तू सच और जग है माया
ले ले मेरी छाँव तुझे
कभी फोन पे उँगलियाँ भी मेरे नाम पे रुकती तो होंगी
भरमाती तो होंगी कुछ आहटें
अश्क़ों की बदलियाँ भी तेरे ग़ालों पे झुकती तो होंगी
धुल जाती तो होंगी मुस्काहटें
बोल..
सजना तू ने क्या पाया
रख के तेरी धूप तुझे
ग़म सच और राहत माया
समझा है खूब मुझे
जलने दे..
— © विक्रम श्रीराम एडके
(एक संगीतकार द्वारा बनायी गयी धुन पर लिखा था यह गीत। किसी भी गीतकार के अधिकांश गीतों की तरह यह भी अप्रकाशितता के समुद्र में कहीं खो गया। शब्द स्मरणीय लगे, तो सोचा आप के साथ साझा कर लूँ। कैसे लगे, अवश्य बताईएगा।)
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