सफ़र नया..!
जेबें तो साफ़ है
पर आँखों में ख़्वाब है
जुनूँ के क़ाफ़िलों की
आदत ख़राब है
छोड़ी है मँजिले
रस्तों के वास्ते
खोने-पाने का यह
भी अपना हिसाब़ है
डगर नयी है, जिगर वही है
और है, सफ़र नया!
अपने साथ में है कुछ नए फासले
बंदिशें भी राह में खुल के साँस ले
पंछी है, उड गए
मोडों पे, मुड गए
राहों में जो मिला
हम उस से जुड गए
डगर नयी है, जिगर वही है
और है, सफ़र नया!
सडक जहा पर ले जाए
अपना भी वहीं पे ही दिल आए
रुकना हम को सताए
के डर को तोडो, छोडो, दौडो,
दिन में, या रात में
तूफ़ाँ, बरसात में
रस्तों के बादशाह
हम चलते रुबाब से
डगर नयी है, जिगर वही है
और है, सफ़र नया!
— © विक्रम श्रीराम एडके

Lovely..
वाह वाह, जीयो जीयो और ढेर सारी प्रगति करो।
“पर आँखों में ख़्वाब है
जुनूँ के क़ाफ़िलों की
आदत ख़राब है
छोड़ी है मँजिले
रस्तों के वास्ते”
भाईं मेरे, मंज़िल आपके लिए पलके बिछाए इंतेज़ार कर रही है.