Category Archives: Poetry

क्रिएटिविटी की बूँदें

परेशानियाँ बो के जब उधेड़ोगे नीन्दें, तब जा कर बरसती है दो-चार क्रिएटिविटी की बूँदें! टप्प कर के गिरती है कुछ, और कुछ कँकर सी सटाक लगती है, अाधे जल रहे दिल से लग के भाँप भी बन जाती है कोई! एक-आध बच भी जाती है कुछ, तो वह भी हम मोबाईल, लैपटाप या टिवी के पराश्राव्य शोर से मार देते है! और फिरते रहते है भौकाल बन के बाकी बचा कुछ-एक हज़ारवाँ भाग सहलाते हुए! कि देखो, मैं ने कितना ऑफबीट कर दिया यह! अरे भाई, देने वाले ने क्या दिया था, तू ने कितना लिया है! छप्पर तो …Read more »

वादा

(धुन: इरऽविन्ग तीऽवाय. फिल्म: 96. संगीत: Govind Vasantha) ************************************ हक़ीक़त से कैसे साझा करे नयनों में तैरे सपने समय से क्या हम वादा करे दो ही मिले थे लम्हें रैना ले के चाँद के निशाँ बहती चली है और ही दिशा भोर ने है उस का आँचल यह भरा चाँद के है हिस्से में काली ख़ला फिर भी क्यूँ ना आह वह भरे हक़ीक़त से कैसे साझा करे नयनों में तैरे सपने एक आँच थी मेरा जीवन पिघला गयी एक बाँसुरी नयी सरगम सिखला गयी यूँ तो उम्र भर मैं थी भागी जिस के लिए थी वह कस्तुरी मेरे दो …Read more »

वृत्तावर्त

सुरज ढलता है तो, और जग में जलता है वह, अस्त-उदय खेल है यह भेद बुद्धी का! मृत्यू ध्रुव है तो, जन्म भी तो ध्रुव होगा, जनन-मरण चक्र है यह भेद दृष्टी का! अमावस के पीछे पौर्णिमा, कालिमा के आगे रक्तिमा, वृत्तावर्त से बना है भवसमुद्र सारा! धानानानानानाना..!! अधर्म के मार्ग पुष्प उगते, धर्ममार्गपर है शूल चुभते! पाप को चाहे यदि तजना, पुण्य की भी रस्सी क्यूँ ना छोडे! पाप क्या क्या धर्म (मुद्रा), पुण्य क्या अधर्म (के आयाम), एक को हम जो दे (मिटा किंतु), मुद्रा तो तब भी घूमेगी ना! धानानानानानाना..!! — © विक्रम श्रीराम एडके । ========================= …Read more »

लढ मित्रा

डरतो कश्याला तू लढ मित्रा लढत्याची दासी धरणी मित्रा दु:ख तितुके माया हो सूर्य गिळतो छाया हो टाकीच्या घावांमधुनी देव बनते काया हो वेदना रे वीराला लिहिली असे जन्माला वेणांची करुनि गीते गा तू आपुल्या कर्माला तुझिया रे कष्टांनी हो अवनिला आधारा तू बांध माथ्यावरती जखमांचा हा भारा व्रण हे जरी भीषण रे युद्ध वीरा भूषण रे तू पार्थ तुझा तू कृष्ण तुझा तू तुझी गीता रे होतील कविता ह्या तलवारी देतील अंधारा त्या ललकारी डरतो कश्याला तू लढ मित्रा लढत्याची दासी धरणी मित्रा गंध मातीचा येण्या चार महिने ताप हो तपाचे फळ मिळण्या पाहावी लागते वाट हो शंभरवेळा पडताना …Read more »

कधी कधी

कधी कधी रात्र विरताना, दिवस उगवायाचा असतो अजून, सूर्य उमलायाचा असतो अजून! चंद्राचं इंधन पुरतं संपलेलं नसतं आणि लुकलुकत असतात ताऱ्यांचे लाखो पलिते, क्षितिजचुंबी गगनाच्या लाक्षागृहात! कुणीतरी साखरझोपेत कूस बदलतो, कुणाची मिठी घट्ट होते कुठे कुरकुरत असतो पंखा तर कुठे स्वप्नांची होडी पैल होते! अश्या एकाकी अंधारवेळी मी टक्क जागा असतो, कधी सुटलेले हात आठवत, तर कधी मिटलेली दारे साठवत! तू विचारलं होतंस, ‘विसरणार तर नाहीस ना मला’ आणि ‘मला विसर, माझं लग्न ठरलंय’, हेदेखील तूच म्हणाली होतीस! मला तेव्हाही उत्तर सुचलं नव्हतं, मला तेव्हाही उत्तर सुचलं नाही! त्या एकांत प्रहरी मात्र, सुचत राहातात सारीच न दिलेली उत्तरे, आणि त्यावरच्या …Read more »

गुलज़ार

नज़्म पूरे जोबन पे थीनूर के कोहरे बहते थेइश्क़ तो तब भी था मगरवह और जगह रहते थे चलते-बहते एक रातसय्यार टकराया चाँद सेनूर मिला नज़्म को जा करअब्रों की दिवार फाँद के सागर डोल गया था उस दमतारे सारे उफनने लगे थेदूर कहीं कोहसारों मेंख़्वाब पकने बनने लगे थे वक़्त थम गया था उस वक़्तनज़्म-ओ-नूर का दीदार हुआइक हलचल सी हुई उजालों मेंइक नाम उठा ‘गुलज़ार’ हुआ — © विक्रम श्रीराम एडकेGulzar #HBDGulzarSaab

ख़याल

कई दफ़ा खयाल, बयाँसे ज्यादा खुबसुरत होते हैं, और हर इक बयाँ के पीछे होते हैं सैकडों मुर्दा ख़याल! नज़्मोंकी तआरीफ करते हैं लोग, ख़यालोंके नआले कौन सुनता हैं? फूटे अल्फ़ाज़, चीखते ख़यालोंसे ज्यादा भाते हैं शायद!! ऐ मेरे ख़याल, ऐ मेरी कल्पना.. इक तुम्हींपे तो लिखता हूँ मैं नज़्में, बयाँ करता हूँ तुम्हारा हुस्न, जो पकडमें नहीं आता, फिसल जाता हैं.. सच कहता हूँ.. मेरी नज़्मोंसे कहीं ज्यादा खुबसूरत हो तुम, जँचती हैं वह तुमसे! इक तुम्हाराही तो आसरा हैं उन्हें.. वरना नज़्मोंका क्या हैं.. उडते परीन्दे हैं महज, ना कोई ठिकाना – ना कोई आशियाँ..! — © विक्रम.

वैनतेय

काल तू मला मारलं होतंस ना, पाहा आज मी पुन्हा उभा राहिलोय! तू करुन टाकलं होतंस छिन्नविच्छिन्न मला, मी ते सगळे तुकडे गोळा केले आणि सांधलंय बघ हे देहभर आभाळ! आजपासून इथे बरसतील केवळ असण्याचेच मेघ, होय मी आहे अजूनही, मी आहे आणि मी राहाणार, मी असलो आणि नसलो तरीही नेहमीच तुझ्या अपराधगंडाने सडलेल्या मनात, मी राहाणार! कारण.. कारण, तूच तर होतास ना मला तोडून-मोडून फेकणारा? तू मला तोडलंस आणि पाहा, मी झालोय कृष्णबासरी! अवघं वृंदावन डोलवण्याची ताकद आहे माझ्यात आज!! तुझा एक एक घाव जरी मला संपवण्यासाठी होता तरी नव्याने मला माझ्याच दगडात माझ्याच हक्काचा देव सापडत होता त्यातून.. …Read more »

तेरा नाम

लफ़्ज़ अटक-अटकके आते है इन दिनों ख़यालात बिखरतेसे जा रहे है बदमाश बदली चिढ़ाती है तेरा नाम ले-लेके दिलके दोशमें उलझसा जाता हूँ मैं तब.. तब वहीं तेरा नाम खुद एक नज़्म बनके चलता है मेरे साथ सुलझाता है वह खयालोंके धागे, जो अस्तव्यस्त पडे रहते है किसी सुर्ख़ जगह.. ऐसी जगह, जहा ना सुरज होता है उपर ना पाँवोंतले ज़मीं बस यहीं सोचके रह जाता हूँ मैं की – यह किस नदीमें बहता चला जा रहा हूँ मैं, ना हाथमें पतवार है, ना बहावको कोई दिशा साथ है तो बस इक तेरे नामकी खुशबू जो खींचके ले जा रही …Read more »

जीवन त्रिविष्टप था..!!

Song : Ennodu Nee Irundhaal Music : A. R. Rahman Singers : Sid Sriram, Sunitha Sarathy Film : I/Ai The following is not a translation, but an independent song written by me on the tunes of “Ennodu Nee Irundhaal” & convey the same feel as the original song. You can call it as a ‘Hindi Cover Version’ पंख तो थे खोले उसने पर वो अपनेही ख्वाबोंसे जल गया हाँ.. उडने चला था वो पर टूटा.. गिर गया.. दिलका पंछी मरता रहा, इतनाही बस कहता रहा.. जीवन त्रिविष्टप था, नर्क बना है जो तेरे बिन! हो, सजनी रे अब ऐसे जीना …Read more »