Category Archives: Poetry

पुराना ज़ख़्म

बडे झुलसे-झुलसेसे मौसम है धधक रही है धूप और छाँवभी ये तू है या फिर तेरे ख़यालोंकी तपिश, तुम्हें सोचता हूँ तो जल जाता हूँ अपनेही तापसे मैं गल जाता हूँ कितने अँधियारे है काटें इक उजालेकी आस में कितने सैय्यार निगल गया हूँ बस एकही साँस में ये तू है या तेरे वजूदकी परछाई, इक आहटहीसे बल खाता हूँ डूबता सूरज हूँ ढल जाता हूँ कितनी बार फूँके है यादोंके रिसालें कितनी बार फिर उन्हें बनाया है ये तू है या इन खँडहरोंसे गुज़रा झौंका कोई, इक छुअनहीसे सील जाता हूँ पुराना ज़ख़्म हूँ खिल जाता हूँ तुम्हें सोचता …Read more »

मेरे राम कहाँ..?

आहत क्रौंचकी किलकारी, निषादका आखेट है जारी पायसदान पानेको तरसे, कौसल्याके प्रियकाम कहाँ? राम कहाँ, मेरे राम कहाँ? कैकेयी हर घर सन्निद्ध है दशरथ फिरभी वचनबद्ध है लक्ष्मणके प्यारे परंतु, ऋषियोंके आराम कहाँ? राम कहाँ, मेरे राम कहाँ? दण्डकारण्य आजभी हतबल दैत्य राज करते है प्रतिपल शीला बनके पंथ निहारे, अहल्याके उपशाम कहाँ? राम कहाँ, मेरे राम कहाँ? वाली-सुग्रीव भेद चला है सच्चा था वोही जला है संजीवनी लानेको निकले, हनुमतके श्रीराम कहाँ? राम कहाँ, मेरे राम कहाँ? रावणकाल वर्तमान भयंकर घुटता बिभीषण यद्यपि धुरंधर अशोकवनमें वैदेही व्याकुल, पुकारती निजधाम कहाँ? राम कहाँ, मेरे राम कहाँ? लव-कुशतो बिछडेही रह गए …Read more »

चेहरे

ख्वाबतले कुचले चेहरे देखे है बिनबातके उजले चेहरे देखे है छोडके रिवायत देखा जो मैंने, अपनेही आप जले चेहरे देखे है चेहरे चलते है चाल, जीतते भी है बाज़ी, जीतनेवाले चेहरोंपे लेकीन, घाँव गहरे देखे है! चिपकाके चेहरेपर चेहरा, उसको ही वजूद बताते है, पौनीरातमें उसके सैंकडों, टुकडे बिखरे देखे है! चेहरे खाली कैनवास, चेहरे रंगोंका गोदाम है, आँखोंकी ब्रशसे झाडो तो, वीराँ जझीरे देखे है! — © विक्रम. (www.vikramedke.com)

लाम नहीं मिलता

फ़ुर्क़तकी रातका रंग देखा है कभी? काला काला सा होता है.. गाढा.. स्याह.. फिर नदी बन जाती है उसकी और बहता रहता है उसमें, जबींपे काला टीका लगाया नब़ी, चाँद थामें एक हाथमें, तो दूजेमें जलता दिल! जलता दिल, जो चाँदसे कहीं ज़्यादा रौशनी देता है.. और सुरजसे कहीं ज़्यादा आँच! नब़ी ताँकता रहता है उस उजालेमें हरइक मोड़ की इस दर्यामें कोई तो मोड़ होगा, जो फ़ारसीका तालिब हो, जो पहचानता हो लामको लाम नहीं मिलता, दिल नहीं बुझता, चाँद नहीं ढलता, रात फ़ुर्क़तकी, और गाढ़ी होती चली जाती है..! — © Vikram Edke [ www.vikramedke.com ]

माझ्या मना..

सकाळचा हिंसाचार सायंकाळच्या तांडवापुढे क्षुल्लक वाटू लागतो उद्दाम अनौरस अंधार तेवढा रात्रंदिन जागतो अरे अंधारातच तर जगायचंय आपल्याला, कारण उजेडासाठी गरजेची असते आग! तेव्हा माझ्या मना स्वस्थ राहा, येऊ देऊ नकोस राग!! आग लागण्यासाठी जाळावा लागतो जीव आणि षंढा, तुला तर नुसत्या विचारानेच भरते हीव त्यापेक्षा सोपे मेणबत्ती जाळणे, निरुपद्रवी जिची आग! माझ्या मना स्वस्थ राहा, येऊ देऊ नकोस राग!! ते येतात मुडदे पाडतात, आणि आम्ही पाडतो मुद्दे ‘दहशतवादाला धर्म नसतोच मुळी’, मग कितीही बसू देत गुद्दे गुद्दे खा, मस्त राहा, फारफार तर बन सेक्युलरी नाग! माझ्या मना स्वस्थ राहा, येऊ देऊ नकोस राग!! अरे मृत्यू कुणाला चुकलाय, मग त्यांनी …Read more »

मंथन

उठता ज्वार एवं गिरते रत्न मैं ज्येष्ठ या तू कनिष्ठ – हठधर्मी प्रयत्न कभी मदिरा का नि:सारण तो कभी मदिराक्षी का उत्थान जो अधिक से अधिक समेटें, बस वोही महान विचार ये अभेद्य है, हारा सो दैत्य है मेरूसे लिपटा वासुकी किन्तु, क्षरता सुनित्य है कौई पचाएगा हालाहल और कौई अमृत पाएगा नींवमें स्थापित कूर्म, पिसता है पिसता जाएगा लक्ष्मी वरेगी उसीको जिसके गलेमें तुलसीहार है देव निश्चिंत है की उनका पक्षधर अमृत-कहार है न्याय क्या अन्याय क्या, सब दृष्टी का भेद है कहा ले जा रहा है ये मंथन सबको, सोचा तो खेद है! सोचा तो खेद है!! — …Read more »

समयके मुडे पन्नोंपर..!

भोर मल रही थी आँखे उस वक़्त और रात बस सोनेही वाली थी परसोंकी तरह उसकी खिडकी कल और आज भी खाली थी वो खिडक़ी चार आँखोंके जहा रोज़ पेंच लडा करते थे उडते अरबी घोडें जहापर पैनी नज़रोंसे अडा करते थे वो पानी डालती थी तुलसी को तो प्यास मुसाफिरको लग जाती थी ताज़ा नहाये बाल झटकाती वो सैंकडों बारिशें छूट जाती थी वो झुका लेती थी फिर पल्कें जब वो आँखोंसे सलाम अद़ा करता साथ चलनेका तो ना सही कभी हाँ, पर निभानेका वादा  करता फिर जाने लगता था जब वो, वो नज़रोंके ताबीज़ बुना करती थी उससे …Read more »

Gurupaurnima

Dear A.R. Rahman – You were there when no one was When everyone is there, you still are Shadows leave, you do not Every moment teaching me a lot When I cry, you wipe out my tears You hold my hand, when strike out fears Your are a boat, sailing me through the Bhava-Saagar You not merely entertain, spiritually uplifts me rather You are the one who always give me a smile Which I wear everyday & walk another mile Dear A.R. Rahman, you are a Sad-Guru for me. Always keeping me on the right path & keeping my Vivek …Read more »

याद हैं..?

रात-रात जागकर हम चाँद काटा करते थे! याद हैं? और अमावसको जब वो फ़नाह हो जाता, तो तारे बाँटा करते थे!! मैं ख्वाबोंसे भरता था माँग, तुम मुझमें सिमटा करती थी! मैं हार जाता था बाज़ी, और दोनों जीता करते थे!! तुम तो चली गयी बाज़ी आधी छोडके.. बस मैं बचा हूँ, रात बची हैं, और हाँ, चाँदभी तो बाक़ी हैं फ़लकपे.. अधकटा! वोही चाँद, जिसकी छाँवतले ज़िंदगीभर साथ निभानेका वादा किया था तुमने..! याद हैं? – © विक्रम श्रीराम एडके. (www.vikramedke.com)

ढूँढता रहता हूँ..!!

रातें ऊब जाती हैं अँधेरोंसे दिन जल जाते हैं सवेरोंसे मैं ढूँढता रहता हूँ तुझको पिया बुझती राख़के ढेरोंसे!! इक सुरंगसी बनी हैं मौनकी जीस्त निगला करती हैं इक चाँद दुभंगता रहता हैं तारोंके बिखरे डेरोंसे!! वो खिडकीभी अब उजड गयी हैं जहा तेरी ज़ुल्फोंमें शामें अटका करती थी बस घौंसलेके उडते हैं तिनके खाली पडे मुण्डेरोंसे!! रातें ऊब जाती हैं अधेरोंसे दिन जल जाते हैं सवेरोंसे मैं ढूँढता रहता हूँ तुझको पिया बुझती राख़के ढेरोंसे!! – © विक्रम श्रीराम एडके. (www.vikramedke.com)