याद हैं..?
रात-रात जागकर हम चाँद काटा करते थे!
याद हैं?
और अमावसको जब वो फ़नाह हो जाता,
तो तारे बाँटा करते थे!!
मैं ख्वाबोंसे भरता था माँग, तुम मुझमें सिमटा करती थी!
मैं हार जाता था बाज़ी, और दोनों जीता करते थे!!
तुम तो चली गयी बाज़ी आधी छोडके..
बस मैं बचा हूँ,
रात बची हैं,
और हाँ, चाँदभी तो बाक़ी हैं फ़लकपे.. अधकटा!
वोही चाँद,
जिसकी छाँवतले ज़िंदगीभर साथ निभानेका वादा किया था तुमने..!
याद हैं?
– © विक्रम श्रीराम एडके.
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