ढूँढता रहता हूँ..!!
रातें ऊब जाती हैं अँधेरोंसे
दिन जल जाते हैं सवेरोंसे
मैं ढूँढता रहता हूँ तुझको पिया
बुझती राख़के ढेरोंसे!!
इक सुरंगसी बनी हैं मौनकी
जीस्त निगला करती हैं
इक चाँद दुभंगता रहता हैं
तारोंके बिखरे डेरोंसे!!
वो खिडकीभी अब उजड गयी हैं जहा
तेरी ज़ुल्फोंमें शामें अटका करती थी
बस घौंसलेके उडते हैं तिनके
खाली पडे मुण्डेरोंसे!!
रातें ऊब जाती हैं अधेरोंसे
दिन जल जाते हैं सवेरोंसे
मैं ढूँढता रहता हूँ तुझको पिया
बुझती राख़के ढेरोंसे!!
– © विक्रम श्रीराम एडके.
(www.vikramedke.com)