वादा

(धुन: इरऽविन्ग तीऽवाय. फिल्म: 96. संगीत: Govind Vasantha)

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हक़ीक़त से कैसे साझा करे
नयनों में तैरे सपने
समय से क्या हम वादा करे
दो ही मिले थे लम्हें
रैना ले के चाँद के निशाँ
बहती चली है और ही दिशा
भोर ने है उस का आँचल यह भरा
चाँद के है हिस्से में काली ख़ला
फिर भी क्यूँ ना आह वह भरे
हक़ीक़त से कैसे साझा करे
नयनों में तैरे सपने

एक आँच थी मेरा जीवन पिघला गयी
एक बाँसुरी नयी सरगम सिखला गयी
यूँ तो उम्र भर मैं थी भागी जिस के लिए
थी वह कस्तुरी मेरे दो जग महका गयी
ना मोह ना ही कोई भी है शिकवा अब
दिल था दिल है और है बहता दरिया

कदम-कदम मैं याद बन के साथ साथ आऊँगा
उदास सी हो जाओगी तो गीतों से मनाऊँगा
तू नूर की नदी है तेरा ज़िक़्र भी तो नूर है
पपीहा बन के था जिया मैं पपीहा बन के गाऊँगा
सही-ग़लत के दायरे है जिस्म के लिबास पे
मैं पार की बहार में यूँ रूह से पुकारूँगा तुझ को
तू आ जा ना..

— © विक्रम श्रीराम एडके
[www.vikramedke.com]

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टीप: यह अनुवाद या भाषांतर नहीं, अपितु फिल्म में चित्रित प्रसंग एवं संहिता को ध्यान में रखते हुए लिखा गया एक स्वतंत्र गीत है । जिन्होंने फिल्म देखी है, वह इस गीत से कदाचित अधिक संबद्ध हो पाएँगे, किंतु आशा है की औरों को भी यह उतना ही भाएगा ।

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