नूर-ए-जहाँ
जब पलकोंके नीले परदे उठे,
तो दुनिया रौशन हुई,
मेरी राह जैसे, तुझसे कौसर हुई..!
जब चाहतमें तेरी राहत मिले,
तो चुमूँ परछाईयाँ,
ये हसीं खुमारी, मुझको क्योंकर हुई..!
तु बेखबर, मैं बेसबर..
फिर कैसे हो, दिलका बसर..
अजनबी झौंकेपे ‘मैं’ उड चला..!
नूर-ए-जहाँ, नूर-ए-जहाँ..
तू सामने, दूर हैं जहाँ..!
तुझसे शुरू.. तुझपे खतम,
इतनाही हैं मेरा जहाँ..!
– © विक्रम
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