स्वयंसूचना
स्वयंसे कोई भाग सके ना
कर्मकी गठरी त्याग सके ना
चिरनिद्रामें जाग सके ना
सुन!
मृत्यू तुम्हारे समीप खडी हैं
देख आँखोंसे आँखे भिडी हैं
नवीन लडाई मनमें छिडी हैं
सुन!
तू वीर हैं, जियाला हैं
तुझसे ही सारा उजियाला हैं
तेरा ये काल निवाला हैं
ओ वीर रे..!
रख धीर रे..!
सुन!
मन मर्मोंके भेद भुलाकर
जीवनको आकाश पिलाकर
स्नायूसे स्नायूको मिलाकर
सुन!
काल कदापि स्तब्ध नहीं हैं
उस बिंदूपर शब्द नहीं हैं
कोई विनाप्रारब्ध नहीं हैं
सुन!
गीताका ये अभिज्ञान हैं
लडता हैं वोही महान हैं
जीवन इसीका प्रमाण हैं
ओ वीर रे..!
रख धीर रे..!
सुन!
कुछभी यहाँ चिरकाल रहे ना
मरे हुएसे रक्त बहे ना
भास्करभी रात्रिको सहे ना
सुन!
स्वयंसे कोई भाग सके ना
कर्मकी गठरी त्याग सके ना
चिरनिद्रामें जाग सके ना
सुन!
– © विक्रम
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