मेरे पैगंबर!!
रोना-धोना,
सपने बोना,
पत्ते काट फिर बाजी खोना!
फिर उठना,
फिर टूटना,
गिरना-पडना,
खुदही से लडना!
ढेर हो जाए तो –
अपनी लाश,
अपनी लाश – आपै ढोना!
फिर नयी जात,
फिर नया वार,
कदमबोसी करती नजरें
फिर वही इंतजार!
बस यहीं चल रहा हैं मुसलसल..
यहीं जिंदगी हैं इन दिनों..
रोना आता हैं तो अपनीही पीठ सहलाकर कह लेते हैं –
“ये जो आँसू हैं ना,
वो आँसू नहीं है..
आसमाँसे आयतें उतरी हैं तुम्हारे नाम की… मेरे पैगंबर”!!
– © विक्रम.
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