कौन हूँ मैं ये सोचता हूँ..!

कौन हूँ मै ये सोचता हूँ,
खयालोंके गुच्छे नोंचता
हूँ! 
अधमरे ख्वाब मेरे,
सूखे पानी से सिंचता हूँ!!

शायद अंगारा मैं बुझी आग का,
अंदर ही अंदर जलता हूँ!
नहीं मिलता जवाब फिरभी,
मैं धुआँ धुआँ टटोलता हूँ!!

मैं वहशी हूँ दरिंदा कोई,
भागते साएँ दबोचता हूँ!
फिरभी अपनेही कानोंमें,
मैं बनके चीख गुँजता हूँ!!

इन्साँ हूँ पागल मैं कोई,
खुदको मिलनेसे डरता हूँ!
मेरे अंदर हैं जो खुदा उसको,
बाहर सजदे करता हूँ!!

कौन हूँ मैं ये सोचता हूँ..!

– © विक्रम.

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