याद हैं वोह हमारी पहली मुलाक़ात की रात..?

याद हैं वोह हमारी पहली मुलाक़ात की रात?
हमारी दोस्तीका मोती तुमने अपनी नर्म पल्कोंपे तोला था..
शायद धनकमें कुछ और रंग जुड़ गए होंगे उस रात,
या फिर यूँ कहो की ज़िन्दगी के रेगिस्तांमें बरसात हुई थी पहली बार..
एक रात वोह भी तो थी,
जब हमने सारी दुनियादारीको लात मारके कहकहे लगाए थे!
लगा था जैसे वक़्त के पन्नोंपे किसीने पेपरवेट रख दिया हो!
‘यारी-दोस्ती और बात हैं, तो दुनियादारी कुछ और’
बात ये समझके भी नहीं समझना चाहते थे उस रात हम तीनों..
कल को एक रात वो भी तो आएगी..
की जब तुम चली जाओगी..
हम भी आंसूओंको बारिश का पानी कहके जी बहला लेंगे!
ज़िन्दगी तो किसी पहिए की तरह हैं, गोल-गोल!
फिर किसी मोडपे मुलाक़ात तो होगी ही होगी..!
तब तुमसे पूछेंगे,
याद हैं वो हमारी पहली मुलाक़ात की रात?
हमारी दोस्ती का मोती तुमने अपनी नर्म पल्कोंपे तोला था..!
– © विक्रम.

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