
चँद कंचोंकी आवाज हुई बस, फिर खेल सारा बिखर गया! पंछी उड गये पेडोंसे और, माँ का दामन सिहर गया!! सफेद बर्फपे गिरे थे जो, वो स्याह खूनके छींटें थे! फर्जकी खुशबू थी जिनमें, वो आँसू बडे ही मीठे थे!! गुजर गये थे मौसम यूँ ही, सावन सारे रुठे थे! ‘लौट आऊँगा प्रिये’, कहा था जिनमें वो वादे सारे झूठे थे!! परसोंही जन्मे बच्चेका उसने, मुख भी अब तक देखा न था! बूढे पिताके चरणोंमें, सुना हैं, कई दिनोंसे मथ्था टेका न था!! नेता मस्त थे घोटालोंमें, आवाम चैनसे सोया था! बस धरतीका सीना उस दिन, चुपके चुपके रोया था!! …Read more »