Category Archives: Poetry

वाकियात

चँद कंचोंकी आवाज हुई बस, फिर खेल सारा बिखर गया! पंछी उड गये पेडोंसे और, माँ का दामन सिहर गया!! सफेद बर्फपे गिरे थे जो, वो स्याह खूनके छींटें थे! फर्जकी खुशबू थी जिनमें, वो आँसू बडे ही मीठे थे!! गुजर गये थे मौसम यूँ ही, सावन सारे रुठे थे! ‘लौट आऊँगा प्रिये’, कहा था जिनमें वो वादे सारे झूठे थे!! परसोंही जन्मे बच्चेका उसने, मुख भी अब तक देखा न था! बूढे पिताके चरणोंमें, सुना हैं, कई दिनोंसे मथ्था टेका न था!! नेता मस्त थे घोटालोंमें, आवाम चैनसे सोया था! बस धरतीका सीना उस दिन, चुपके चुपके रोया था!! …Read more »

उत्तिष्ठत, जाग्रत, प्राप्य-वरान्निबोधत!!

The track “Nenje Ezhu” from Maryan is one of my favorite songs. It’s great music & soulful voice of none other than A.R. Rahman inspired me so much that I decided to write a Hindi poem on this tune. So, here is my take on this song. This is not a translation but an independent poetry conveying the meaning of the song. I’ve taken the poetic-freedom of incorporating many concepts from the holy Katha-Upanishada (“Awake, Arise.. & stop not till the goal is achieved”!! – Katha/1.3.14; Apparently the favorite quote of Swami Vivekananda!) & the Bhagawad-Geeta (“Nainam Chhindati Shastrani – …Read more »

बहुत याद येते..!

जेव्हा जेव्हा अवचित बरसात येते,माझ्या पागल दिलाला तुझी, बहुत याद येते..! माझ्या पागल दिलाची कहाणी, सांगू मी कुणा?रोजच सताविती मजला, या दग्ध प्रीतिखुणा!जेव्हा जेव्हा अलवार अशी चांदरात येते,माझ्या पागल दिलाला तुझी, बहुत याद येते! माझ्या पागल दिलाची कहाणी, ऐकूनी ये साजणीगूज तुझेही उमटू दे आता, माझ्या अवखळ मनी!जेव्हा हलके संध्या धरेला कुर्निसात देते,माझ्या पागल दिलाला तुझी, बहुत याद येते! बहुत याद येते!बहुत याद येते! – © विक्रम.

खुदा

तुफाँ उफनता पानी थाइक तु ही मेरा मानी थारात की चौखट पे जलतातु ही दिया आसमानी था! तुझसेही चलना सीखा मैंनेतू इन पैरोंकी रवानी थाघाट-घाटपे जिसे साधू गायेंतु वो किस्सा-कहानी था! उलझनोंसे जूझा तब मैं जानातू हर मुश्किलमें आसानी थासायेने भी छोडा था साथ मेरातु अनाहत मेरा सानी था! – © विक्रम.

ये बात क्यूँ ना समझूँ मैं..?

दिन आये रात आये, सदियाँ चाहे बीती जाये,बुलबुले बने और फूटें, समंदर अडिग लहराता जाये..!समंदर सत्य बुलबुला मिथ्या, ये बात क्यूँ ना समझूँ मैं?तू बनाये तू बिगाडे, ये बात क्यूँ ना समझूँ मैं?देवा, क्यूँ ना समझूँ मैं..?सपनोंकी माला तोडके, तू नये मोती हैं जोडता..मैं देखूँ टूटी माला, वो मोती क्यूँ ना देखता..!मेरा सँवारना भी बिगाडना, ये बात क्यूँ ना समझूँ मैं?तेरा बिगाडना भी सँवारना, ये बात क्यूँ ना समझूँ मैं?देवा, क्यूँ ना समझूँ मैं..?मैं राहके पत्थरोंपर शीश जो नमाता जाऊँ,क्यूँ इन्सानी चेहरोंमें मैं सूरत तेरी ना देख पाऊँ..!राह, राही, मंझिल तूही, ये बात क्यूँ ना समझूँ मैं?खुद, खुदतक चलके, खुदको …Read more »

संग मेरे हमदम..!

[There is a very beautiful song in “Kadal” called “Moongil Thottam” set on A. R. Rahman’s tunes & sung by Abhay Jodhpurkar/Harini.  This poem is on that tune. It is not a translation of the song but an original poetry conveying the mood of the song. The soul purpose is to capture the beautiful mood set by the song in Hindi (rather Hindusthani) language. If any group/band want to make a cover version of original song using these lyrics, kindly contact me as this work of poetry is protected by Bhaaratiya copyright laws. Enjoy the poetry & do give a feedback!] …Read more »

रिश्ता

कौन हूँ मैं तुम्हारा, और कौन हो तुम मेरी! खयालोंके कच्चे धागे, बस अहसासोंकी डोरी!! मैं एक मुसाफिर जरासा, तू शीतलसी हैं छाया! सौ अफसाने लिख दिये, किताब फिरभी अधूरी!! मैं चॉंद तांकता रहता हूँ, उसपार कहीं हैं गॉंव तेरा! बादलोकी कालीन बिछाओ तो जरा, के मिलना बडा जरूरी!! – © विक्रम

कसं जगायचं..?

कसं जगायचं..तुजविण जीवन सूने, कसं जगायचं..? तुझ्या घरपासनं मी चकरा मारतोय रोजदिसशील तू कधीतरी ही आशा फुलते रोजमग दिसताच तू मला, मी खुदकन हसायचंपण नाहीच हे होणे, कसं जगायचं…?कसं जगायचं..तुजविण जीवन सूने, कसं जगायचं..? कॉलेजवरती कट्ट्यावरती विषय तुझाच मनीहळूच टिपतो डोळे जेव्हा बघत नाही कोणीयेणाऱ्या प्रत्येकीत आता तू मला दिसायचंबघ फितूर झाले डोळे, कसं जगायचं…?कसं जगायचं..तुजविण जीवन सूने, कसं जगायचं..? कुठेच नाही लक्ष मी गर्दीत एकटाभिजून भिजून किती तरी माझा रुमाल कोरडातिन्ही-त्रिकाळ तुलाच मी देवाकडे मागायचंपण नाहीच तो ही देणे, कसं जगायचं…?कसं जगायचं..तुजविण जीवन सूने, कसं जगायचं..? भेटणारच तू मला हे मला माहित आहेहोणारच तू माझी हे मला ठाऊक आहेमग आपल्या नात्याचं …Read more »

कौन हूँ मैं ये सोचता हूँ..!

कौन हूँ मै ये सोचता हूँ, खयालोंके गुच्छे नोंचता हूँ! अधमरे ख्वाब मेरे, सूखे पानी से सिंचता हूँ!! शायद अंगारा मैं बुझी आग का, अंदर ही अंदर जलता हूँ! नहीं मिलता जवाब फिरभी, मैं धुआँ धुआँ टटोलता हूँ!! मैं वहशी हूँ दरिंदा कोई, भागते साएँ दबोचता हूँ! फिरभी अपनेही कानोंमें, मैं बनके चीख गुँजता हूँ!! इन्साँ हूँ पागल मैं कोई, खुदको मिलनेसे डरता हूँ! मेरे अंदर हैं जो खुदा उसको, बाहर सजदे करता हूँ!! कौन हूँ मैं ये सोचता हूँ..! – © विक्रम.

तेरा चेहरा..!

आंसू का एक क़तरा,आँखोंसे आज उतरा,याद आया जो, तेरा चेहरा..! नजरोंसे जो ओझल हैं तू,संगरीसी, बोझल हैं तू!अह्सासोंका बादल हैं तू,दर्दसे भी चंचल हैं तू!नजरोंके अह्सासोंका बादल आज पिघला,याद आया जो, तेरा चेहरा..! ग़मकी भी होती हैं एक खुशबू,सूँघता हूँ अब तो मैं हरसू!तेरी इक-इक सदाको मैं तरसू,अपनीही आँखोंसे अब मैं बरसू!ग़म ही की बाँटें खुशबू तेरा सूखा-सूखा गजरा,याद आया जो, तेरा चेहरा..! – © विक्रम.